जालौन उरई--------: उत्तर प्रदेश बुंदेलखंड जनपद जालौन के चुर्खी थाना क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम बिनौरा वैध में कमलेश पुत्र बाबू निवासी बिनौरा ने अपने घर के सामने भगवान शंकर के मंदिर की जगह में आंवला अमरुद जामुन कटहल बरगद,, पाखरं नीम के पौधे फलदार व छायादार लगाए उनके बारे में सबको अवगत कराया और कहा कि वर्तमान समय में कोई पुण्य कार्य है, तो वह है वृक्ष लगाना। पुण्य कमाने या जनहित के काम करने के विषय पर हर बार सामर्थ्य का मुद्दा सामने आ जाता है। सम्पन्नता के अपने पैमाने हैं और विपन्नता के अपने लेकिन यही एक काम है जो हर वर्ग का व्यक्ति कर सकता है। धरती को संभाले रखने में वृक्षों की सबसे अहम भूमिका है। पुराने लोगों की स्मृति में अवश्य होगा कि पहले आंगन से लेकर गांव के कांकड़ तक अलग-अलग तरह के कई फलदार पेड़ हुआ करते थे। जरूरी नहीं कि उनके फल हम मनुष्यों द्वारा खाए ही जाते हों लेकिन उनका होना भर प्रकृति के संतुलन को बनाए रखता था, गूलर, पान, सेमल से लेकर जामुन, करौंदे, आम, इमली, अमरूद तक। शरशैय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने भी युधिष्ठिर को जो मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया था, उसमें फल व छस तरह संतान की परवरिश कर उसे पुष्ट किया जाता है, वैसे ही पेड़ों को किया जाना चाहिए। यहां तुलना करें तो वृक्ष श्रेष्ठ सिद्ध होंगे। संतान एक परिवार, एक वंश का भला करती है, जबकि पेड़ जाने कितनी ही पीढिय़ों तक सबका भला करते हैं, वह भी बदले में कुछ भी मांगे बगैर। हां, पहले लोग इस ओर विशेष ध्यान देते थे लेकिन धीरे-धीरे मनुष्य ने अपने लिए अनुपयोगी फलों के पेड़ों को काटना शुरू कर दिया।
इससे सिर्फ उन फलों के पेड़ ही बचे रहने लगे जिन्हें मनुष्य खुद खाता है। नतीजतन जंगल के पशु-पक्षी आदि भूखे रहने लगे क्योंकि जो पेड़ मनुष्य के लिए अनुपयोगी थे, जंगली पशु-पक्षियों के लिए लिए तो वे ही भूख मिटाने के साधन थे। वृक्षारोपण और तालाब बनवाने को सदाचार की श्रेणी प्राप्त है क्योंकि ये सर्वहिताय कार्य हैं। पेड़ कोई निज स्वार्थ से नहीं लगा सकता और न ही तालाब अपने ही सुख के लिए हो सकता है।
वस्तुत: न सिर्फ मनुष्य के लिहाज से बल्कि प्रकृति, पेड़-पौधों, जंगली पशु, पक्षियों और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह निर्णय क्र ांतिकारी है। जब ये फलदार पौधे उगेंगे और बड़े होंगे तो 1०-12 साल बाद हजारों भूखे पक्षियों व पशुओं के लिए वरदान साबित होंगे। निश्चित रूप से इन पेड़ों का होना प्रकृति के बिगड़ते संतुलन को थामने का भले ही छोटा किंतु महत्त्वपूर्ण काम करेंगे। दरअसल, हर फल में खास तत्व होते हैं और वे शरीर में संतुलन बनाने का काम करते हैं।
पहले के लोग इसलिए ही बीमार नहीं होते थे क्योंकि वे जंगलों या अपने खेत की मेड़ों पर उगे पेड़ों से प्राप्त हर तरह के फल खाते थे मगर अब हम सुपर बाजारों में सुंदर पैकिंग में पैक लीची और अनन्नास से बाहर नहीं आ पा रहे। ऐसे में जामुन या करौंदे में मिलने वाला तत्व हमें कैसे मिलेगा। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है। धरा की सेवा और स्वकल्याण का इससे सरल मार्ग कोई क्या सुझाएगा।
पैदा होने के साथ ही हम मुफ्त में सांस लेना शुरू करते हैं। सांस की इस ऑक्सीजन के लिए हमने क्या किया? अगर आपको एक महीने कमरे में बंद कर दिया जाए तो आपको 5०० से 7०० पौधे और सूरज की रोशनी चाहिए, ताकि आप सांस ले सकें। वो भी कौन सा पौधा, कितनी उम्र का, बगैर सारी तकनीकी बातों के विश्लेषण के बाद।
ऑक्सीजन पाने का सबसे आसान और प्रदूषण रहित तरीका है पेड़। एक इंसान को दिन भर में अपनी सांस के लिए करीब 11००० लिटर हवा चाहिए जिसमें बीस फीसदी ऑक्सीजन है जिसमें से हर सांस में हम पांच फीसदी ऑक्सीजन की खपत कर लेते हैं। यह तो हुई मनुष्य की बात। दूसरे प्राणी भी सांस लेते हैं।
जहां वे प्रकृति के चक्र में योगदान कर रहे हैं, बीज और परागण के जरिए, खरपतवार चरकर और नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को चटकर, वहीं हम लगातार पेड़ काटते ही जा रहे हैं। मानव इतिहास के शुरूआती समय से जहां हमारी संख्या कई सौ गुना बढ़ गई है, वहीं हमने उस समय के पेड़ों की संख्या को 54 फीसदी कम कर दिया है। इस लिहाज से देखा जाए तो अब ज्यादा सांस लेने वाले हैं और सांस पैदा करने वाले पेड़ बहुत कम। हम हर साल 15 करोड़ पेड़ काट रहे हैं।
अब खुद सोचिए हम पेड़ काट रहे हैं या आने वाली पीढ़ी की सांसें एक इंसान को सांस लेने के लिए 22 वयस्क पेड़ों की जरूरत है। क्या हमने उतने पेड़ लगाए हैं? याद रहे कि पेड़ वयस्क होने में समय लेता है और हम पैदा होते ही सांस लेने लगते हैं।
यदि बैंकिंग सिस्टम से देखें तो बच्चे के पैदा होते ही आप 22 पेड़ भी लगा दें तो भी आप ओवर ड्रॉफ्ट में रहेंगे। आज पृथ्वी पर जितने लोग हैं, उनके लिए तकरीबन 15 हजार करोड़ पेड़ों की जरूरत है यानी एक एकड़ में करीब 7०० पेड़ के हिसाब से। आज पेड़ लगाएं जाएं और जंगल बचाने के लिए आवाज उठाएं। सांस का कर्ज जो है।
इससे सिर्फ उन फलों के पेड़ ही बचे रहने लगे जिन्हें मनुष्य खुद खाता है। नतीजतन जंगल के पशु-पक्षी आदि भूखे रहने लगे क्योंकि जो पेड़ मनुष्य के लिए अनुपयोगी थे, जंगली पशु-पक्षियों के लिए लिए तो वे ही भूख मिटाने के साधन थे। वृक्षारोपण और तालाब बनवाने को सदाचार की श्रेणी प्राप्त है क्योंकि ये सर्वहिताय कार्य हैं। पेड़ कोई निज स्वार्थ से नहीं लगा सकता और न ही तालाब अपने ही सुख के लिए हो सकता है।
वस्तुत: न सिर्फ मनुष्य के लिहाज से बल्कि प्रकृति, पेड़-पौधों, जंगली पशु, पक्षियों और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह निर्णय क्र ांतिकारी है। जब ये फलदार पौधे उगेंगे और बड़े होंगे तो 1०-12 साल बाद हजारों भूखे पक्षियों व पशुओं के लिए वरदान साबित होंगे। निश्चित रूप से इन पेड़ों का होना प्रकृति के बिगड़ते संतुलन को थामने का भले ही छोटा किंतु महत्त्वपूर्ण काम करेंगे। दरअसल, हर फल में खास तत्व होते हैं और वे शरीर में संतुलन बनाने का काम करते हैं।
पहले के लोग इसलिए ही बीमार नहीं होते थे क्योंकि वे जंगलों या अपने खेत की मेड़ों पर उगे पेड़ों से प्राप्त हर तरह के फल खाते थे मगर अब हम सुपर बाजारों में सुंदर पैकिंग में पैक लीची और अनन्नास से बाहर नहीं आ पा रहे। ऐसे में जामुन या करौंदे में मिलने वाला तत्व हमें कैसे मिलेगा। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है। धरा की सेवा और स्वकल्याण का इससे सरल मार्ग कोई क्या सुझाएगा।
पैदा होने के साथ ही हम मुफ्त में सांस लेना शुरू करते हैं। सांस की इस ऑक्सीजन के लिए हमने क्या किया? अगर आपको एक महीने कमरे में बंद कर दिया जाए तो आपको 5०० से 7०० पौधे और सूरज की रोशनी चाहिए, ताकि आप सांस ले सकें। वो भी कौन सा पौधा, कितनी उम्र का, बगैर सारी तकनीकी बातों के विश्लेषण के बाद।
ऑक्सीजन पाने का सबसे आसान और प्रदूषण रहित तरीका है पेड़। एक इंसान को दिन भर में अपनी सांस के लिए करीब 11००० लिटर हवा चाहिए जिसमें बीस फीसदी ऑक्सीजन है जिसमें से हर सांस में हम पांच फीसदी ऑक्सीजन की खपत कर लेते हैं। यह तो हुई मनुष्य की बात। दूसरे प्राणी भी सांस लेते हैं।
जहां वे प्रकृति के चक्र में योगदान कर रहे हैं, बीज और परागण के जरिए, खरपतवार चरकर और नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को चटकर, वहीं हम लगातार पेड़ काटते ही जा रहे हैं। मानव इतिहास के शुरूआती समय से जहां हमारी संख्या कई सौ गुना बढ़ गई है, वहीं हमने उस समय के पेड़ों की संख्या को 54 फीसदी कम कर दिया है। इस लिहाज से देखा जाए तो अब ज्यादा सांस लेने वाले हैं और सांस पैदा करने वाले पेड़ बहुत कम। हम हर साल 15 करोड़ पेड़ काट रहे हैं।
अब खुद सोचिए हम पेड़ काट रहे हैं या आने वाली पीढ़ी की सांसें एक इंसान को सांस लेने के लिए 22 वयस्क पेड़ों की जरूरत है। क्या हमने उतने पेड़ लगाए हैं? याद रहे कि पेड़ वयस्क होने में समय लेता है और हम पैदा होते ही सांस लेने लगते हैं।
यदि बैंकिंग सिस्टम से देखें तो बच्चे के पैदा होते ही आप 22 पेड़ भी लगा दें तो भी आप ओवर ड्रॉफ्ट में रहेंगे। आज पृथ्वी पर जितने लोग हैं, उनके लिए तकरीबन 15 हजार करोड़ पेड़ों की जरूरत है यानी एक एकड़ में करीब 7०० पेड़ के हिसाब से। आज पेड़ लगाएं जाएं और जंगल बचाने के लिए आवाज उठाएं। सांस का कर्ज जो है।
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